Jungal Me Collage Ki Ladki ka Shikar

जंगल में कमसिन कॉलेज गर्ल्स का शिकार

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मेरा छोटा नाम दिनेश है. हरियाणा के एक गांव में पला बढ़ा, अब शहर में रह कर कालेज की पढ़ाई कर रहा हूं. एथलीट भी हूं इसलिए शरीर खासा सुघड़ और सख्त है. रंग खूब गोरा और कद पांच फीट सात इंच है. मुझे अपने अंगों में सबसे ज्यादा पसंद अपना हथियार है. यह औसत लंबाई का है पर कलाई जितना मोटा है. जिन औरतों को चूत चौड़ी हो जाने के कारण अब पूरा मजा नहीं मिल पाता, वे भी मेरा लंड लेकर मस्त हो जाती हैं.

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आज अपने स्कूल के दिनों की एक बात बताता हूं. मैं बारहवीं में था और बेस्ट एथलीट भी. इसलिए लड़कियाँ मुझ पर ध्यान देती थीं. पर मैं था शर्मीलालड़कियों के सामने आते ही मेरी बैंड बज जाती थी.

दूसरा यह कि मुझे पतले बदन की बजाय भरे हुए बदन ज्यादा पसंद थे, ऐसे में लड़कियों की जगह टीचरों पर ध्यान ज्यादा जाता था. और टीचर मिलना तो आसान नहीं है. खैर मैं उन्हें देख देख कर आहें भरता रहता.

उन्हीं दिनों हमारी इंग्लिश की नई मैम आईं, उनका नाम सुप्रिया था. वे इतनी खूबसूरत थीं कि मेरी तरह शायद सारी क्लास के लड़के घायल हुए होंगे. साड़ी पहन कर आई थीं, बहुत गोरी और सजी संवरी. सुना था कि शहर का एक मशहूर ब्यूटी पार्लर उन्हीं का है. मुझे जिस चीज ने बेहोश किया वह था उनका कोमल बदन. वे मेज पर हाथ टिकाए खड़ी होतीं तो पेट पर सलवटें पड़तीं. फिर वे सीधी होतीं तो सलवटों की जगह लाल लाल लकीरें सी पड़ जाती. कुछ समय बाद वापस उनका पेट गोरा हो जाता. मतलब समझिये कि उनके बदन पर जरा सा दबाएं तो कुछ देर के लिए लाल निशान पड़ जाता था.

 

वे भी अपनी खूबसूरती से वाकिफ थीं, पर उन्हें इसकी आदत थी. क्लास के कई लड़के उन्हें सीधा ताड़ते थे, पर उन्होंने कभी कुछ नहीं कहा. बस आते ही पढ़ाने में तल्लीन हो जातीं. उन्हें सीधे देखने में मुझे शर्म आती थी इसलिए इसलिए एक ऐसी कलाई घड़ी लाया, जिसका डायल शीशे जैसा था. इसमें मैं नीचे मुंह किए मैम को जी भर कर देखता रहता.

 

गर्मी की छुट्टियाँ आईं तो स्कूल की तरफ से ट्रिप का एलान हुआ. मैं खेलों में वैसे ही बहुत बाहर रहता था इसलिए ट्रिप में दिलचस्पी नहीं थी. लेकिन जब पता लगा कि सुप्रिया मैम भी साथ जा रही हैं तो मैंने जल्दी से फार्म भर दिया. मुझे पता था कि मम्मा पापा भी एकदम हाँ कर देंगे.

खैर हमें शिमला जाना था और कैंपिंग भी आबादी से कुछ दूर करनी थी. हम तीस लड़के लड़कियाँ और साथ में चार टीचर. औरों का तो पता नहीं लेकिन मुझे तो अपना मकसद पता ही था.

 

पहले दिन पहाड़ियों में घूमते हुए भी मेरी नजर सिर्फ सुप्रिया मैम पर टिकी हुई थीं. टीशर्ट, जींस में वैसे भी उनकी गुदगुदी और कसी हुई फीगर मेरा हाल बुरा करने को काफी थी उस पर टीशर्ट में उभर रहे उनके मध्यम आकार के बिल्कुल गोल बूब्स. दिल कर रहा था कि उनको बाहों में लेकर छाती से इतनी जोर से भीचूं कि उनके गोल बूब्स कुचल जाएं.

यहाँ तक कि मेरे दोस्त मस्ती करते रहे पर मैं सुप्रिया मैम के आसपास ही मंडराता रहा.

 

रात हुई तो टीचर्स हमें सोने के लिए बोलने लगे. मैं भी चाहता था कि सब सो जाएं. पर कैंप में जल्दी कौन सोता है भलादो बज गए, मेरे टैंट में मेरे दोस्त अब भी चुहलबाजियों में लगे हुए थे. आखिर उकता कर मैंने शुभम से कहा- मैं सूमित के टैंट में होकर आता हूं. देखता हूं वे क्या कर रहे हैं.

बाहर तो निकल, सर ने साफ मना किया हुआ है. वैसे भी वे अभी जाग रहे होंगे. और तू आज है कहाँ? सारे मस्ती कर रहे हैं, तू गुमसुम है?”

अरे तबियत ठीक नहीं है यार. मैं होकर आता हूं.

 

बाहर आया तो चारों तरफ सन्नाटा था. चांद की रोशनी में सब उजला नीला हो गया था. जंगल के बीच कैपिंग और रात दो बज रहे हों तो कहाँ से आवाज आएगी. ज्यादातर स्टूडेंट्स भी सो गए थे. बस कहीं कहीं से आवाज आ रही थी. मैंने कुछ देर सर की टोह ली कि कहीं बाहर ही न हों. फिर हिम्मत कर सुप्रिया मैम के टैंट के पीछे पहुंच गया. कुछ देर यूं ही अंधेरे में खड़ा रहा. अंदर लाइट थी पर टैंट का कपड़ा काफी मोटा था. मैंने कोई दरार या छेद ढूंढने की कोशिश की. घूमकर साइड पर आया कि टैंट की पट्टियों वाली खिड़की में से पीली रोशनी की पतली सी लकीर नजर आई. खिड़की बंद थी, पर एक साइड से जरा सा कपड़ा हटा हुआ था.

 

मैंने चारों तरफ का जायजा लिया और धड़कते दिल के साथ टैंट के अंदर देखने लगा. सुप्रिया मैम लैंप की लाइट में कुछ पढ़ रही थीं, दूसरी मैम सो रही थीं. सुप्रिया मैम ने पिंक नाइट सूट पहना हुआ था और किताब पढ़ते पढ़ते वे बैड पर उल्टी लेटी थीं. उन्होंने पैर मोड़ रखे थे और हिला रही थीं. उन्हें नहीं पता था कि खुले नाइट सूट में से उनके गोर मखमली बूब्स साफ दिख रहे हैं और एक बदमाश लड़का इस वक्त इन्हें घूर रहा है. 

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मैंने फिर चारों तरफ देखा और अपने निक्कर की इलास्टिक नीचे खींच कैदी को खुली हवा में खींच लिया. सुप्रिया मैम को देख कर वह वैसे भी आजाद होने के लिए फड़फड़ा रहा था. मैंने हल्का सा हाथ फेरा तो जनाब तन कर खड़े हो गए. अब मेरी आंखें तो झिरी पर थीं और हाथ से मैं मुठ मार रहा था. काफी देर साहब का कचूमर निकालने के बाद अचानक सुप्रिया मैम बैड पर सीधी होकर लेटीं कि तभी मेरा निकलने को हुआ पर तभी मेरी गांड पर किसी ने कुछ चुभाया.

मैं बिदककर सीधा हुआ, गांड फट गई कि सर हुए तो आज मर गए.

हक्का बक्का सा मुड़ा तो सामने कृतिका और शिवानी थीं. अब सीन यह बना कि घबराहट में मुंह बाए मैं खड़ा था और मेरे सामने मुश्किल से हंसी दबाती दो लड़कियाँउससे भी खराब यह कि मेरा निक्कर अभी भी नीचे था और छूटते छूटते रह गया मोटा लिंग उनकी तरफ देख कर फुंफकार रहा था. आखिरी सैकेंड में तो वैसे भी आकार बड़ा हो जाता है, फिर मेरा तो वैसे भी ज्यादा मोटा है. उसका लाल सुपारा खुला पड़ा था.

 

मुझे तब अहसास हुआ जब दोनों लड़कियों की हंसी बंद हो गईं और वे एकटक मेरे देवदास को घूरती रह गई. मैंने घबरा कर निक्कर ऊपर किया और भागा, मैंने अपने टैंट पर जाकर ही सांस ली. अंदर जाने की हिम्मत नहीं पड़ी इसलिए अंधेरे में काफी देर खड़ा रहा. बार बार यही ख्याल आ रहा था कि अब तो सारे स्कूल में किरकिरी हो जाएगी. शिवानी वैसे भी बड़ी तेज है, वह तो छोड़ने वाली है नहींमैं सुप्रिया मैम के सामने कैसे जाऊँगा.

और उससे भी बड़ी बात कि घर वालों को पता लग गया तो डूब मरने वाली बात हो जाएगी.

 

अगले दिन ट्रैकिंग पर जाना था पर मैं जान बूझ कर देर करता रहा. सब बार बार आगे चलने को कहें और मैं डरे हुए बछड़े की तरह पीछे रह जाऊं और कृतिका और शिवानी की तरफ तो जैसे कर्फ्यू लगा हुआ था. उधर तो जैसे देखने से ही मेरा दाह संस्कार हो जाएगा. इतनी घबराहट हो रही थी कि सब मुझे ही घूरते लग रहे थे. किसी तरह कैप वगैरह पहन कर खुद को छिपाने की कोशिश कर रहा था.

आज तो सुप्रिया मैम की तरफ भी देखने की हिम्मत नहीं पड़ रही थी.

 

दोपहर हुई, सब लंच के लिए इकट्ठा हुए, बुफे था, मैं एक दो फ्रैंड्स के साथ खड़ा प्लेट में खाना ले रहा था कि तभी कूल्हों पर किसी ने सीधे दरार में हाथ फिराया. मैं चौंक कर मुड़ा तो शिवानी मुस्कुराती हुई निकल गई.

डर से मेरी फिर फट गई.

पर दिमाग काबू आया तो लगा कि उन्होंने किसी को बताया नहीं है. नहीं तो अब तक पता नहीं क्या क्या हो गया होता.

 

शिवानी दूर जाकर खड़ी हो गई और फिर घूम कर वापस आने लगी.

मर गए, फिर वही हरकत करेगी. किसी ने देख लिया तो?

पर तभी फिर दरार में किसी का हाथ चला. मैं उछल भी नहीं सकता था. जरा सा सिर मोड़ कर देखा तो कृतिका ने बदमाशी की थी.

हे भगवान! ये तो मेरे मजे ले रही हैं. कहाँ मैं स्कूल का रफ टफ बंदा, जिससे टीचर भी जल्दी से मजाक नहीं करते, कहाँ से चालू छोकरियाँ मिट्टी पलीत करने पर तुली हैं.

 

शिवानी फिर मेरे पास पहुंच गई थी.

मैं जल्दी से आगे की तरफ सरका पर वह फिर अपना काम कर गई.

मैंने सोचा सह ले बेटा, आज तो ये ही सिकंदर हैं.

 

मैं मुड़ा तो श्रवण से टकराते टकराते बचा. प्लेट में रायता थोड़ा छलक गया था. वह कमर पर हाथ रखे मुझे घूर रहा था.

मैंने हिम्मत करके कहा- कैसे खड़ा है यार, देख खाना गिर जाता.

खाने की छोड़ ये बता कि शिवानी अभी क्या करके गई है?”

कुछ नहीं, उसने क्या किया?”

ओए होए, तुझ से तो झूठ भी नहीं बोला जाता. साले वो तेरे पिछवाड़े पर हाथ फेर गई और तू यहाँ खड़ा है. चल मेरे साथ मजे लेते हैं.

नहीं यार, मुझे नहीं लेने मजे!मैं हकलाया और जल्दी से वहाँ से हट गया.

 

कुछ देर अकेले रहा तो दिमाग ठिकाने आया, मुझे लगा कि वैसे ही डर रहा हूं. उन्हें कुछ बताना होता तो अब तक बता दिया होता. और कुछ बताने के चक्कर में होतीं तो ये हरकतें क्यों करतीं? मैंने अब शिवानी पर ध्यान दिया. वह नाम की तरह शिवानी थी, सांवली, लेकिन चमकदार और प्यारी सी, दुबली और मजबूत. स्केटिंग करती थी इसलिए जींस में उसकी मांसल जांघें उत्तेजित करती थीं. बहुत छोटे मगर ठोस बूब्स!

 

वह बार बार बीच बीच में मुझ पर नजर फेंक देती. बात तो सहेलियों से कर रही होती, देख मेरी तरफ रही होती. उसने टीशर्ट और ट्रैक पैंट पहन रखी थी. शक्ल भी अच्छी खासी थी. बूब्स भी भड़कीले थे. मैंने सोचा कि सुप्रिया मैम के चक्कर में अगर यह मिल जाए तो क्या हर्ज है.

 

फिर से रात हुई और रात दो-ढाई बजे मैंने फिर वही हरकत दोहराने की ठान ली. सोचा कि अगर आज शिवानी कृतिका आ गईं तो छोडूंगा नहीं.

हुआ भी वहीमैंने जैसे ही निक्कर नीचे की कि वे दोनों पीछे पहुंच गईं. दरअसल उनका टैंट मैम के टैंट के पास वाला था और उनकी खिड़की से यह साइड साफ नजर आती थी. मैंने जल्दी से निक्कर ऊपर की और वहाँ से निकलने लगा. उन्होंने रोका पर मैं रुका नहीं. बोल वे सकती नहीं थीं कि टैंट में दूसरों को सुनाई दे जाएगा. मैं कैंप से दूर चल दिया. वे दोनों भी पीछे आईं.

 

जैसे ही पहला पेड़ आया मैं झट मुड़ा और शिवानी को कस कर बांहों में भरकर पेड़ के पीछे खींच लिया. हल्की फुल्की सी तो वह थी ही, आराम से बंधी चली आई. उसने हाथ अपनी छातियों के आगे अड़ा रखे थे और मेरी हरकत पर एकदम घबरा गई थी.

अब हाल यह कि वो छूटने के लिए जोर लगाए और मैं उसे और जोर से कसूं.

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मैंने उसके होंठ चूमने की पूरी कोशिश की पर वह मुंह इधर-उधर कर के बचती रही. पर नीचे के होठों को कौन बचाए. मेरे मूसल राज तो उनमें पूरा गड़ ही गए. मैंने उसे यूं ही बांधे बांधे बांहों में उठा लिया, उसके पांव जमीन से दो इंच ऊपर थे और मैं उसे जैसे बीच में से खूंटी पर टांगने पर उतारू था, वह बचने के लिए जोर लगाए जा रही थी.

 

ऊपर से कृतिका पीछे से मुझ पर घूंसे बरसाने लगी. अब समझ आया कि वे तो बस मजे ले रही थी. सिर पर पड़ी तो दहशत में आ गई. यह सोच कर मैं तो शेर हो गया. मेरी हरकतों से उनकी तो मां चुद गई, वे रोने कलपने लगीं.

पर अब क्या हो सकता था, अब तो तीर कमान से छूट गया था. मेरे मूसल राज बिना मलाई का भोग लगाए तो मानने से रहे. शिवानी ने होठ नहीं चूमने दिए तो मैं सख्ती से बोला- देख चुप कर के खड़ी रह वर्ना गाल काट खाउंगा. फिर देती रहना सब को सफाई.

 

वह रोकर बोली- छोड़ दे दिनेश, मैं तो वैसे ही तुझे परेशान कर रही थी.

कर रही थी तो कर ना. देख अब मुझ से रहा नहीं जाता. अगर सीधी नहीं हुई तो चोद मारूंगा.

 

मेरे मुंह से सरेआम चोदने की बात सुनकर वो सचमुच रो पड़ी.

कृतिका बोली- तू कुछ नहीं करेगा दिनेश, नहीं तो मैं चिल्लाऊँगी, सारे आ जाएंगे.

एक बार तो मेरी फटी पर रोबदार आवाज में बोला- चिल्ला कर देख, कोई आएगा तो क्या जवाब देगी. यह कि मैं दो लड़कियों को जबरदस्ती यहाँ उठा लाया? और तुम्हें मेरे बम पर हाथ फेरते श्रवण ने देख लिया था. वह मेरी गवाही देगा. वैसे भी जब तक कोई आएगा, तब तक मैं तेरी सहेली की चूत फाड़ दूंगा. तब निकलवाते रहना मेरा खूंटा सारे मिल कर.

 

वह असहाय थी और अब मिन्नतों पर उतर आई थी.

सारे दिन से परेशान कर रखा है. अब क्या हुआ?”

वे दोनों रोने लगी.

 

मैंने अब भी शिवानी को बुरी तरह कस रखा था. मैंने थोड़ा शांत होकर कहा- देख अब तो छोड़ नहीं सकता. तुम दोनों ऐसे ही चली गईं तो मेरी खैर नहीं. एक काम कर शिवानी, मेरा हाथ से कर दे बस. मैं तुझे कुछ नहीं करूंगा.

शिवानी ने रोते हुए मुंह फेर लिया और साफ मना कर दिया.

 

मुझे लगा कि शायद उसे इन सब बातों का मतलब भी पता नहीं है. मैंने झट उसके नाइट सूट में हाथ डाल दिया. चूत पर हाथ पड़ते ही वह छटपटाई तो मैं सख्त आवाज में बोला- देख तेरा पजामा फट जाएगा. या तो मेरी बात मान नहीं तो नंगी कैंप में जाने को तैयार हो जा.

कृतिका ने बीच बचाव किया- अच्छा तू कुछ और नहीं करेगा ना? देख कसम है तुझे!

 

मेरे हाँ कहने पर शिवानी से बोली- कर दे बहन, किसको पता लगेगा. कोई आ गया तो मेरी भी मुसीबत हो जाएगी.

शिवानी की सुबकियों में कमी नहीं आई.

 

तभी मुझे अपने निक्कर पर किसी के हाथ महसूस हुए. यह कृतिका थी, उसने निक्कर नीचे कर मेरा मजबूत लंड अपने हाथ में ले लिया और बोली- देख मैं कर रही हूं, शिवानी को छोड़ दे अब.

मैंने शिवानी को छोड़ा तो वह जमीन पर बिखर गई, घुटनों के बीच मुंह छिपा कर रोने लगी.

 

कृतिका हिम्मत कर मेरे लौड़े को ऊपर नीचे करने लगी. वह मेरे सामने बैठी थी और उसका गोरा खूबसूरत मुखड़ा चांद की रोशनी में चमक रहा था. उसके गुदगुदे मुलायम हाथों में जादू था. मेरी चमड़ी कभी पीछे होती कभी फिर ढक जाती. प्रीकम की बूंदों ने लंड चिकना कर दिया था. मैंने हाथ बढ़ाकर कृतिका के चूचे पकड़ने की कोशिश की तो उसने हाथ झटक दिया.

मुझे गुस्सा आ गया, मैंने कृतिका का सिर पकड़ा और लंड उसके मुंह में अड़ा दिया. वह हकबका कर पीछे हटी और कुछ बोलने को मुंह खोला तो मैंने लंड पेल दिया. एक सैकेंड से भी कम समय में यह सब हो गया.

 

अब मेरा लंड उसके गर्म गीले मुंह में घुसा था और मैंने दोनों हाथों से उसका सिर पकड़ रखा था. वह एक हाथ से मुझे धक्का दे रही थी और दूसरे से मेरी टांग पर मुक्के बरसाए जा रही थी. शिवानी अपना रोना भूल कर हमें देख रही थी.

मेरा खुद पर काबू नहीं था, मैं तगड़ा था और वे मुलायम मासूम. कृतिका मुझसे छूट नहीं पाई. मैंने उसके मुंह में ही घस्से लगाने शुरू कर दिए. उसका विरोध अपने आप ही कम हो गया. कुछ देर बाद वह बस अपने दोनों हाथों से मेरी टांगों को पकड़े मेरा जुनून खत्म होने का इंतजार करने लगी. मुझे स्वर्ग का मजा आने लगा. अब कभी मैं लंड पूरा निकाल कर फिर घस्सा मारता तो वह उसके मुंह में ना जाकर गालों पर रगड़ जाता कभी नाक पर अड़ जाता. पर कृतिका मुंह बंद नहीं कर रही थी.

 

मैंने लंड उसके मुंह से निकालकर उसके गालों, गले और गर्दन पर मलना शुरू कर दिया. मेरा निक्कर मेरे पंजों तक आ गया था. मैंने देर नहीं की और निक्कर निकाल कर टीशर्ट भी उतार दी. शिवानी मेरा राक्षसों जैसा शरीर देख रही थी और मैं कृतिका को रगड़े जा रहा था.

ऐसा नहीं था कि अब तक मेरा निकल नहीं सकता था पर मेरे दिमाग में शैतान घुस गया था. मैं चाहता था कि आज इनमें से एक को तो चोदूंगा ही. इसलिए जब निकलने का चांस बनता तो मैं लंड इधर उधर कर लेता.

 

अब मैंने हाथ नीचे कर कृतिका के बूब्स पकड़ लिए, इस बार उसने जरा भी मना नहीं किया. मौके का फायदा उठा कर मैंने उसको नीचे धकेला और खुद उसके ऊपर आ गया. मैं तो जन्नत में उड़ा जा रहा था. उसका नाजुक गोरा बदन, कोमल बूब्स मेरे नीचे पिस रहे थे और मेरा लंड जांघों पर ठोकर मार रहा था. मैंने उसके पजामे के ऊपर से ही घस्से पर घस्से लगाने शुरू किए और उसका मुंह अपने मुंह में भर लिया.

उसने अपनी दोनों मुट्टियों से घास जकड़ रखी थी और टांगें पूरी खोल दी थीं. मैंने जल्दी से उसका पजामा नीचे किया तो उसने खुद कूल्हे ऊपर कर दिए. मैंने उसकी टीशर्ट भी ऊपर की और सख्त हो गए उसके निप्पल होठों में भर लिए.

 

पहली बार कृतिका के मुंह से सिसकारी निकली और उसने अनजाने में शिवानी के कपड़े अपनी मुट्ठी में भर लिए. मैंने अपना लंड कृतिका की चूत पर सैट किया, उसके होंठ मुंह में भरे, बाजुओं के नीचे से हाथ ले जा कर उसके कंधे पकड़े और गांड का पूरा जोर लगा कर अंदर घुसता चला गया. वह इतनी कसी हुई थी कि मेरे लौड़े में भी दर्द हुआ पर यह दर्द से मजा और बढ़ा रहा था. इस वक्त हालत ऐसी थी कि मैं पत्थर में भी लंड ठोक सकता था, फिर यहाँ तो रस से भीगी हुई मुलायम चूत थी.

 

मैं तब तक नहीं रुका जब तक कि किला फतह नहीं कर लिया. कृतिका बुरी तरह छटपटा रही थी, मेरे होंठों से भिंचे उसके होंठों से गूंगूंगूंगूं की आवाजें निकल रही थीं. उसकी हालत देख शिवानी पूरी ताकत से मुझे धक्का देने और मारने लगी. मैंने कृतिका को दबोचे रखा. कृतिका अधमरी सी होकर शांत हो गई.

 

मैंने होंठ हटाए और अपनेपन से कहा- बस थोड़ा सा और सह ले कृतिका, बस हो गया.

वह रो पड़ी- मैं मर जाऊँगी बहुत दर्द हो रहा है, तू निकाल बसतू निकालनिकाआआआल

 

कृतिका क्लास की सबसे सुंदर लड़कियों में से थी. छोटी सी हाइट, खूब गोरी और गुदगुदी. उसकी शक्ल बहुत मासूम थी. अब तक मैंने कभी नहीं सुना था कि वह किसी लड़के के साथ फ्रेंडशिप में रही हो. उसकी चूत में लंड ठुंसा पड़ा था और वह दर्द से छटपटा रही थी. मेरा मूसल उसकी कोमल चूत में फंसा पड़ा था और जन्नत का मजा दे रहा था.

 

मैंने जल्दी से कहा- अच्छा, ठीक है, निकाल रहा हूंतू रुक तो

मैंने धीरे धीरे सारा लंड बाहर खींचा. कसम से सारे लौड़े के सुपाड़े के नीचे कीड़ियाँ सी काटने लगीं और ऐसा मन किया कि मेरी खाल बेशक सारी फट जाए पर धस्से पर घस्से मारता रहूं. लंड पूरा बाहर आया तो मैं उसी तरह पड़ा रहा.

 

वह मेरे हटने का इंतजार करती रही पर मैंने फिर उसके होंठ कसे और उसी तरह धीरे मगर सख्ती से अंदर उतरता चला गया. इस बार वह थोड़ी सी तड़पी पर मना नहीं किया. मैंने फिर धीरे से बाहर निकाला और धीरे-धीरे अपना पिस्टन चालू कर दिया. मैंने कृतिका के होंठ भी आजाद कर दिए, पर वहाँ अब दर्द नहीं सिसकारियाँ थीं, उसे मजा आ रहा था.

 

शिवानी अब लाइव चुदाई देख रही थी, उसने एक बार मुझे हटाना भी चाहा तो कृतिका ने उसका हाथ पकड़ लिया. मैंने अब कृतिका के शरीर को जकड़ लिया था. धक्के तेज होते जा रहे थे. मैंने महसूस किया कि जो शिवानी मुझे घूंसे मार रही थी अब मेरे नंगे चूतड़ों की दरार तो कभी गोलियों पर पर हाथ फिरा रही थी. मैंने उसे भी पास खींच कर नीचे गिराया और टीशर्ट ऊपर कर उसके छोटे-छोटे मम्मों पर मुंह डाल दिया. वह बुरी तरह कंपकंपा रही थी.

दादा के लंड से मेरी चूत का स्वयंवर हुआ

नीचे कृतिका की चूत मसली जा रही थी और वह अपनी टांगें पूरी चौड़ी करे जिंदगी का आनन्द ले रही थी. कसी चूत और दो-दो कमसिन लड़कियों के सख्त बूब्सइसे छोड़ कर तो मुझे जन्नत भी मंजूर नहीं थी.

मैंने शिवानी को छोड़ फिर कृतिका को कस लिया, मैंने शरीर का पूरा दम लगाकर घस्से मारने शुरू किए और रफ्तार इतनी तेज हो गई कि मेरे भी बस में नहीं रही. फिर हुम्म की आवाज के साथ मैंने अपना लंड पूरा अंदर पेल दिया और इतना जोर से गाड़ा कि कृतिका ऊपर सरक गई. मैंने झट अपना लंड बाहर निकाला और घुटनों पर खड़ा हो गया. मैंने मुट्ठी से लौड़े का दम घोट दिया और कस कर हाथ चलाया तो मोटे वीर्य के छींटे दूर तक उड़ते चले गए.

 

दोनों लड़कियाँ आंखें चौड़ी किए मेरे लौड़े को एकटक घूरती रह गई. मैं गुर्राता हुआ झड़ रहा था और मेरा वीर्य कृतिका के पूरे बदन पर छूट रहा था. उसकी नंगी जांघों, पेट, मम्मों और यहाँ तक कि मुंह पर भी मेरे वीर्य की बूंदें चमक रही थीं.

फिर जैसे मेरी सारी ताकत निचुड़ गई और मैं कृतिका के ऊपर गिरकर हाँफने लगा.

 

एक मिनट तक कुछ होश नहीं था कि मैं कहाँ हूं और वहाँ हो क्या रहा है. होश आया तो मैं कृतिका के ऊपर से साइड में लुढ़क गया. मैं थक गया था. कृतिका वैसे ही पैर फैलाए पड़ी रही. काफी देर तक कोई कुछ नहीं बोला.

आखिर मैं उठ कर बैठा. कृतिका तब भी नहीं उठी और न ही उसने कुछ छिपाने की कोशिश की. वह बस मुझको देख रही थी, उसकी आँखों में क्रोध नहीं प्यार था, उसे भी मजा आया था.

उसकी गोरी गुलाबी चूचियाँ, खूबसूरत नाजुक पेट, हल्की हल्की झांटों वाली फूली बुर और रोम रहित गुदाज गोरी टाँगेंपूरे चांद की रोशनी में इतनी मोहक लग रही थीं कि अभी झड़ा होने के बावजूद मैं फिर औकात पर उतरने लगा, मैंने झुक कर उसके एक निप्पल को चूम लिया. मैंने महसूस किया कि कृतिका के हाथ मेरे सिर के बालों में चल रहे थे.

 

मैंने उसे प्यार किया और पूछा- मजा आया?

बो कुछ बोली नहीं बस हां में सर हिला दिया और आगे बढ़ के मुझे चूम लिया. मैं खुश था, कृतिका भी खुश थी.

 

मैंने एक बार कैंप की ओर देखा. रात के तीन बज रहे होंगे. सब सो रहे थे. किसे पता था कि अंधेरे जंगल में आग लगी हुई है.

तभी मैंने महसूस किया कि शिवानी मेरे बालों में हाथ फिरा रही है. मेरा ध्यान उसकी तरफ मुड़ गया, मुझे लगा कि वो भी अपनी सहेली की तरह मजा लेना चाहती है, उसकी आँखों में मुझे समर्पण का भाव दिखा. अब मैंने शिवानी को भींच लिया और वह भी स्वेच्छा से मेरी बांहों में सिमट आई.

 

उसका सांवला दुबला बदन बड़े आराम से मेरी वासना का शिकार बन गया.

 

हम वहाँ से निकले तो उनकी नजरें नहीं उठ रही थीं. आखिर लड़कियाँ थीं और वह भी अच्छे घरों की. वे वासना में बह गई थीं पर अब यही उन्हें कचोट रहा था.

 

पांच दिन बाद हम कैंप से वापस आए. सुप्रिया मैम तो नहीं मिली थीं लेकिन दो कमसिन कलियाँ मिल गई थीं.

कुछ ही दिन बाद शिवानी मेरे पास आई और हम इतने पक्के दोस्त हो गए कि वह कई बार मुझ से चुदी. कृतिका ने मुझसे मिलने की कोशिश नहीं की तो मैंने भी उससे दूरी बना ली. आखिर एक लड़की की भावनाओं को इज्जत देना ज्यादा जरूरी था.

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